जानिए देवानंद और चंकी पांडे की जीवन की कुछ अनसुनी कहानियां
भारत एक ऐसा देश है जहां पर हर वर्ग को एक सामान्य मान्यता दी गई है। आज हम बात करने जा रहे हैं भारत के सबसे महत्वपूर्ण तबके बारे में जो आजकल बहुत ही ज्यादा चर्चा में है, हम बात कर रहे हैं भारतीय सिनेमा की। बीते कुछ दिनों से भारतीय सिनेमा की छवि ऐसी बना दी गई है कि आम लोग उसकी तरफ देखना पसंद नहीं कर रहे हैं। करीब 3 महीने पहले सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद भारतीय सिनेमा और उनके कलाकारों पर बार-बार उंगलियां उठने लगी। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि भारतीय सिनेमा में सभी लोग एक जैसे हो कई ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने हमें सदैव इंटरटेन किया है चाहे हमारे देश के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना हो या फिर 50 के दशक के देवानंद जिन्हें लोग इतना पसंद करते थे कि उनके ऊपर वाइट कोट पेंट सरकार ने बैन कर दिया था। देवानंद की ऐसी लोकप्रियता थी कि जिस सड़क से उनकी गाड़ी निकल जाती थी महिलाएं उनकी गाड़ियों के पीछे पड़ जाती थी। इस वजह से कई बार कई बड़े हादसे भी हुए जिसके बाद मुंबई कोर्ट ने देवानंद पर ब्लैक कोट पेंट पहनने पर बैन लगा दिया। ऐसे ही भारतीय सिनेमा के एक मशहूर कलाकार है जो कि चर्चा में तो रहे हैं लेकिन उन्होंने ज्यादा फिल्में नहीं की। जब भी वह बड़े पर्दे पर नजर आए हैं उनके फैंस उनके प्रशंसक उनसे काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। ऐसे ही दो महारथी के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं
चंकी पांडे
बात करते हैं चंकी पांडे की, चंकी पांडे प्रख्यात अभिनेताओं में से एक हैं। हालांकि उनका फिल्मी करियर ज्यादा लंबे समय तक नहीं चला। उन्होंने अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित के साथ पहली बार बड़े पर्दे पर कदम रखा था, जिस फिल्म का नाम था तेजाब। इस फिल्म में चंकी पांडे ने सहायक रूप में काम किया था साथ ही उनको तेजाब फिल्म के लिए बेस्ट सर्पोटिंग एक्टर का खिताब भी मिला था। उसके बाद चंकी पांडे कई फिल्मों में नजर आए जैसे की आंखें और हाउसफुल की सीरीज में भी पर कई बार नजर आए हैं जोकि लोगों को काफी ज्यादा पसंद आता है। हाल ही में चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे ने भी बॉलीवुड में कदम रख दिया है। बॉलीवुड फिल्म के अलावा चंकी पांडे ने बांग्लादेशी फिल्म ओ बेबी में काफी नाम कमाया है। उन्हें बांग्लादेश की फिल्मों में सबसे ज्यादा काम मिला और उन्हें उन्हीं फिल्मों से सबसे ज्यादा मुकाम भी हासिल हुआ। बहुत कम लोगों को पता है कि चंकी पांडे का असली नाम सुयश पांडे है, फिल्मों में आने से पहले उनको इसी नाम से लोग पुकारते थे। चंकी पांडे का जन्म 26 सितंबर 1962 में मुंबई हुआ था। चंकी पांडे की पहली डेब्यु फिल्म आग ही आग थी। सोलो सिंह के अलावा चंकी पांडे कई मल्टीस्टारर फिल्म में भी नजर आए। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि चंकी पांडे ने कई बार बांग्लादेशी फिल्मों में काम किया है। 1995 में चंकी पांडे को पहली बार बांग्लादेश की फिल्म में लीड रोल मिला था। थाने भाषा ना आने के बावजूद उन्होंने बांग्लादेश में बहुत ही अच्छा स्टारडम हासिल किया।
देवानंद
हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रहे देवानंद अपने समकालीन एक्टरों में हमेशा अलग थे। उनकी अदाकारी का हर कोई कायल था। भारत सिनेमा में कई हीरो आए और कई हीरो गए लेकिन आज तक देव साहब की टक्कर का कोई भी नहीं आया। देव आनंद को हिन्दी सिनेमा का लीजेंड कहा जाता है। 26 सितंबर को देव आनंद की बर्थ एनिवर्सरी है। इसी दिन 1923 में देब साहब का जन्म पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। देवानंद अपने जमाने के सबसे ज्यादा फैशनेबल आइकन माने जाते हैं। देवानंद को लेकर कई किस्से मशहूर है लेकिन इन सबसे ज्यादा मशहूर है उनका कोट पैंट पहनना। जब भी देवानंद काला कोट पेंट पहन कर बाहर निकलते थे तो लड़कियां छतों से गिर जाती थी या फिर आत्महत्या कर लेती थी। इस वजह से कोर्ट ने उनके काले कोट पहनने पर बैन लगा दिया था। वाइट शर्ट और ब्लैक कोर्ट में देवानंद बेहद खूबसूरत लगते थे। दर्शकों के दिलों में छह दशक तक राज करने वाले देवानंद को एक एक्टर बनने के लिए काफी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। दिलचस्प बात यह है कि जब देव आनंद मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे। देवानंद ही एक ऐसे एक्टर थे जिनकी दीवानगी हर किसी के सर पर चढ़कर बोलती थी। दरसल देवानंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक 1942 में लाहौर से किया था। इसके बाद भी देवानंद आगे पढ़ना चाहते थे। लेकिन उनके पिता ने बोल दिया था कि उनके पास पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है। इन सब परेशानियों के कारण देवानंद ने पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की तरफ रुख कर लिया और वह नौकरी करने लगे और यही से देवानंद का बॉलीवुड की तरफ सफर शुरू हो गया। 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। जब देवानंद मुंबई पहुंचे तो उन्होंने मुंबई के रेलवे स्टेशन के पास एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में देवानंद के अलावा तीन लोग और रहते थे। वे सभी लोग भी देवानंद की तरह फिल्म इंडस्ट्री में कदम जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। काफी दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे और एक समय ऐसा आया की देवानंद के सारे पैसे खत्म हो गए तो उन्होंने सोचा कि अगर मुंबई में उन्हें रहना है तो नौकरी तो करनी ही पड़ेगी। यह बात उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में बताई है।
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